मंगळवार, १२ मार्च, २०१३

अंग्रजी भाषा की डिक्शनरी मेँ मात्र चार लाख
शब्द हैँ
मित्रोँ, हमारे देश मेँ एक सबसे बड़ा झूठ
प्रचारित किया जाता है किअंग्रेजी के बिना कुछ
नहीँ हो सकता क्योँकि यह पूरे विश्व की भाषा है
और सबसे समृद्ध है। आइये
आपको अंग्रेजी की सच्चाई बताते हैँ-
1. भारत अकेला ऐँसा देश है
जहाँ विदेशी भाषा अंग्रजी मेँ
शिक्षा दी जाती है। बाकि सभी देश अपनी मातृ
भाषा मेँ ही अपनी शिक्षा ग्रहण करते है।
2. पूरे विश्व मेँ सबसे अधिक बोली जाने
वाली भाषा चीनी है फिर इसके बाद हिन्दी और
तीसरे स्थान पर रुसी भाषा है।
अंगेजी का बारहवाँ स्थान है। तो फिर
अंग्रेजी पूरे विश्व की भाषा कहाँ से हो गयी?
3. हमारा देश ही एकमात्र अकेला ऐँसा देश है
जहाँ विदेशी भाषा मेँसमाचार पत्र छपते हैँ।
बाकि किसी भी दूसरे देश मेँ
विदेशी भाषा मेँअखबार नहीँ छपते हैँ। और अगर
छपतेभी हैँ तो बहुत कम मात्रा मेँ।
4. अंग्रजी भाषा की डिक्शनरी मेँ मात्र चार
लाख शब्द हैँ और अंग्रेजी के मूल शब्द सिर्फ
65 हजार हैँ बाकि दूसरे भाषाओँ से चोरी किये
हुये शब्द हैँ। इसके विपरीत हिन्दी मेँ 70 लाख
तथा संस्कृत मेँ 100 अरब से भी अधिक शब्द हैँ
और जिस भाषा का शब्दकोष जितना अधिक
होता है वह भाषा उतनी ही अधिक समृद्ध होती है
अर्थात अंग्रेजी का व्याकरण सबसे खराब है।
5. दुनिया का कोई भी धर्मशास्त्र और अन्य
पुस्तकेँ कभी अंग्रेजी मेँ नही लिखी गयी। इसके
अलावा कोईभी दर्शनशास्त्री,
धर्मशास्त्री आजतक अंग्रेजी भाषा बोलने
वाला नहीँ हुआ। रुसो, प्लूटो, अरस्तू
इत्यादि इनका अंग्रेजी भाषा से कोई लेना-
देना नहीँ था। यहाँ तक की ईसा मसीह
की अपनी भाषा कभी भी अंग्रेजी नहीँ रही।
ईसा मसीह ने जो उपदेश दिये थे
वो भी अंग्रेजी भाषा मेँ कभी नहीँ दिये।
बल्कि ईसा मसीह ने अरमेक भाषा में अपने
उपदेश दिए थे। और बाइबिल
भी अंग्रेजी भाषा मेँ नहीँ लिखी गयी थी।
बल्कि अरमेक भाषा में लिखी गयी थी। अरमेक
भाषा की लिपि बिल्कुल
बांग्ला भाषा की लिपि के तरह थी।
6. सयुक्त राष्ट्र महासंघ और नासाकी रिपोर्ट
के अनुसार संस्कृत भाषा कम्प्यूटर के लिये
सबसे उत्तम् है क्योँकि इसका व्याकरण शत्
प्रतिशत शुद्ध है। इसके अलावा अंग्रेजों ने
दुनिया में सबसे कम वैज्ञानिक शोध कार्य
किये।
तो मित्रोँ ये कहानी है अंग्रजी भाषा की और
हमारे देश मेँ बच्चोँ के ऊपर
जबरदस्ती अंग्रेजी थोप दी जाती है।
तथा बच्चा बेचारा सारी उम्र
अंग्रेजी का मारा फिरता रहता है। और उसके
सिर्फ अंग्रेजी सीखने के चक्कर मेँ दूसरे
महत्वपूर्ण विषय छूट जाते हैँ। इसके
अलावा जब सेना के ऑफिसर की भर्ती होती है
तो वहाँ भी अंग्रेजी आना जरुरी होता है। अब
अंग्रेजी का फौज से क्या लेना देना। विश्व के
ताकतवर देश चीन जापान जर्मनी फ्राँस
इत्यादि देशके सैनिक तो अंग्रेजी जानते
भी नहीँ हैँ।
तो मित्रोँ हमको इस अंग्रेजियत की गुलामी से
बाहर निकलना होगा। क्योँकि किसी भी राष्ट्र
का सम्पूर्ण विकास सिर्फ
उनकी मातृभाषा और राष्ट्रभाषा मेँ
हो सकता है।
 
व्दारा ...........विनोद पंचभाई  फेसबुक

कोणत्याही टिप्पण्‍या नाहीत:

टिप्पणी पोस्ट करा